निमेषा दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु
ताः कला।
त्रिंशत्कला महूर्तस्स्यादहोरात्रं तु
तावतः।।
18 निमेषाः
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1 काष्ठा
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30 काष्ठाः
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1 कला
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30 कलाः
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1 मुहूर्तः
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30 मुहूर्ताः
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1 अहोरात्रम्
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तस्मात्
– कालावधिः इत्थं भवितुमर्हति।
कालावधिः
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होराः
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आधुनिकनिमेषाः
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सेकण्ड्स्
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अहोरात्रम्
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24
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1440
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86400
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मुहूर्तः
|
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48
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2880
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कला
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1.36
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96
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काष्ठा
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3.2
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प्राचीननिमेषः
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0.17778
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उपर्युक्तसंख्यानां गणनम् इत्थं
कृतम्
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अहोरात्रम् = 24 होराः
l
एकस्याः होरायाः 60 आधुनिकनिमेषाः। एकस्य आधुनिकनिमेषस्य 60 सेकण्ड्स्।
मुहूर्तस्य कालावधिः = 24 × 60 आधुनिकनिमेषाः ÷ 30 = 48 आधुनिकनिमेषाः
l
कलायाः
कालावधिः = 48 × 60 सेकण्ड्स् ÷ 30 = 96 सेकण्ड्स् = 1.36 आधुनिकनिमेषाः।
काष्ठायाः
कालावधिः = 96 सेकण्ड्स् ÷ 30 = 3.2 सेकण्ड्स्
प्राचीननिमेषस्य
कालावधिः = 3.2 सेकण्ड्स् ÷ 18 = 0.17778 सेकण्ड्स्
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अहोरात्रे विभजते सूर्यो मानुषदैविके।
रात्रिस्स्वप्नाय भूतानां चेष्टायै
कर्मणामहः।।
The Sun makes the division of
अहोरात्रम्।
अहः is
set for the activities of the creatures and रात्रिः is set for their sleep (rest).
There
are two types in it – 1. मानुषम्
अहोरात्रम् 2. दैविकम् अहोरात्रम्।
पित्रे
रात्र्यहनी मासः प्रविभागस्तु पक्षयोः।
कर्मचेष्टास्वहः
कृष्णः शुक्लस्स्वप्नाय शर्वरी।।
दैवे
रात्र्यहनी वर्षं प्रविभागस्तयोः पुनः।
अहस्तत्रोदगयनं
रात्रिस्स्याद्दक्षिणायनम्।।
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अहोरात्रपरिमाणः
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अहः
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रात्रिः
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पितॄणाम्
अहोरात्रम्
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मानवानां
1 मासः
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कृष्णपक्षः
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शुक्लपक्षः
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देवानाम्
अहोरात्रम्
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मानवानां
1 वर्षः
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उदगयनम्
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दक्षिणायनम्
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चत्वार्याहुः
सहस्राणि वर्षाणां तु कृतं युगम्।
तस्य
तावच्छती सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथाविधः।।
इतरेषु
ससन्ध्येषु ससन्ध्यांशेषु च त्रिषु।
एकापायेन
वर्तन्ते सहस्राणि शतानि च।।
युगः
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सन्ध्या
(दैववर्षाः)
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परिमाणः
(दैववर्षाः)
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सन्ध्यांशः
(दैववर्षाः)
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संपूर्णयुगः (दैववर्षाः)
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मानुषवर्षाः
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कृतयुगः
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400
|
4000
|
400
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4800
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17,28,000
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त्रेतायुगः
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300
|
3000
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300
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3600
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12,96,000
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द्वापरयुगः
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200
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2000
|
200
|
2400
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08,64,000
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कलियुगः
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100
|
1000
|
100
|
1200
|
04,32,000
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Total
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1000
|
10000
|
1000
|
12000
|
43,20,000
|
1 दैववर्षः =
360 मानुषवर्षाः। Therefore,
4800 दैववर्षाः =
1728000 मानुषवर्षाः etc.
यदेतत्परिसंख्यातमादावेव
चतुर्युगम्।
एतद्द्वादशसाहस्रं देवानां युगमुच्यते।।
मनुष्याणां
चतुर्युगपरिमाणः = 17,28,000 +
12,96,000 + 8,64,000 +
4,32,000 = 43,20,000 वर्षाः।
दैवयुगः =
43,20,000 ÷ 360 = 12,000
दैववर्षाः = 1 दैवयुगः = 1 मानुषचतुर्युगः।
दैविकानां
युगानां तु सहस्रं परिसंख्यया।
ब्राह्ममेकं
महर्ज्ञेयं तावती रात्रिरेव च।।
तद्वै
युगसहस्रान्तं ब्राह्मं पुण्यमहर्विदुः।
रात्रिं
च तावतीमेव तेऽहोरात्रविदो जनाः।।
ब्रह्मणः
अहः
|
ब्रह्मणः
रात्रिः
|
ब्रह्मणः
अहोरात्रम्
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दैवयुगसहस्रम्
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दैवयुगसहस्रम्
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दैवयुगद्विसहस्रम्
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12000 × 1000 = 1,20,00,000 दैववर्षाः
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12000 × 1000 = 1,20,00,000 दैववर्षाः
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24000 × 1000 = 2,40,00,000 दैववर्षाः
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1,20,00,000 × 360 = 432,00,00,000 मानुषवर्षाः
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1,20,00,000 × 360 = 432,00,00,000 मानुषवर्षाः
|
2,40,00,000 × 360 = 864,00,00,000 मानुषवर्षाः
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यत्
प्राग्द्वादशसाहस्रमुदितं दैविकं युगम्।
तदेकसप्ततिगुणं मन्वन्तरमिहोच्यते।।
दैवमाने
मन्वन्तरकालः
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मानुषमाने
मन्वन्तरकालः
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12000
×
71 वर्षाः
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43,20,000
×
71 वर्षाः
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8,52,000
वर्षाः
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30,67,20,000
वर्षाः
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तस्मात् एकस्मिन् ब्रह्मणः अहनि मनूनां
संख्या = 1,20,00,000 ÷
8,52,000 = 14
अथवा 4320000000 ÷
306720000 = 14
।।इति शम्।।
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